भारत की आज़ादी के लिए पहली चिंगारी जलाने वाले मंगल पांडेय जी को आज ही के दिन फांसी की सजा दे दी गयी थी।
मगल पांडे वो वीर पुरुष थे, जिन्होंने देश की आज़ादी की पहली लौ जलाई थी और उनकी जलाई हुई चिंगारी से अंग्रेजी हुकूमत इतना घबरा गयी कि उन्हें फांसी तक की सजा सुना दी।
लेकिन क्या आप जानते थे है कि मंगल पांडेय आखिर कौन थे और उन्होंने कैसे आज़ादी की जंग छेड़ी।
जन्म – मंगल पांडेय जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया के पास एक छोटे से गांव नगवा में 19 जुलाई 1827 में हुआ था। उनका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था , जिस वजह से उनकी पूजा पाठ में बहुत आस्था थी। उनके पिता का नाम दिवाकर पांडेय और उनकी माता का नाम अभय रानी पांडेय था। उन्होंने अपने करियर जीवन की शुरुआत बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के सिपाही के तौर पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में शामिल होकर की थी।
चलाई थी विद्रोह की पहली गोली – कहते है जब सभी ईस्ट इंडिया के इशारे से चलता था तब मंगल पांडेय जी विद्रोह का बिगुल फुकने वाले पहले व्यक्ति बने थे। उन्हें आज़ादी का सबसे पहला क्रन्तिकारी भी माना जाता है। 1857 के विद्रोह का आरम्भ उन्ही की बन्दुक से हुआ था।
जब वह सेना में थे तब बन्दुक के कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी लगी होती थी और उसे बन्दुक में लगाने के लिए दांत से खींचकर लगाया जाता था। जब यह बात मंगल पांडेय को पता लगी तब उन्होंने इसका इस्तेमाल करने से मना कर दिया, जिसके बाद उन्हें सेना से निकाल दिया गया।
सेना से निकाले जाने पर उन्होंने विद्रोह कर दिया सैनिको को अपने साथ ले लिया और अंग्रेजी अफसर पर हमला कर दिया। उन्होंने जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार उठाए तब उन्होंने ‘मारो फिरंगियों को’ का नारा भी दिया। उन्होंने सार्जेंट मेजर ह्यूसन को गोली भी मार दी। उनके अंग्रेज़ो के खिलाफ बिगुल बजाने के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने उनकी धर पकड़ शुरू कर दी और उनके पकडे जाने पर उन्हें फांसी की सजा भी सुना दी गयी।
दस दिन पहले दे दी गयी फांसी – विद्रोह के नायक मंगल पांडेय से अँगरेज़ इतना खौफ खाने लगे थे कि उन्होंने तय समय से दस दिन पहले ही उन्हें चुपके से फांसी दे दी थी। हालांकि अंग्रेज़ो का इरादा उनको पहले ही फांसी देने का था, लेकिन आस पास के सभी जल्लादों ने उन्हें फांसी देने से इंकार कर दिया , जिसके कारण कलकत्ता से जल्लाद को बुलाकर लाया गया। हालांकि उस जल्लाद को भी नहीं बताया गया कि आखिर किसे फांसी पर लटकाया जा रहा है।
8 अप्रैल 1857 में बैरकपुर में उन्हें फांसी दे दी गयी। मंगल पांडेय की फांसी के बाद आज़ादी और विद्रोह की आग जल गयी और देश आज़ादी पाने के मार्ग पर प्रशस्त हो गया।
मगल पांडेय को आज वीर पुरुष और स्वतंत्रता की लौ जलाने वाले सैनानी के तौर पर जाना जाता है। ऐसे वीर पुरुष को डायरेक्ट सेलिंग नाउ शत शत नमन करता है।