विनायक दामोदर सावरकर को हम सभी वीर सावरकर के नाम से जानते है। सावरकर एक क्रांतिकारी, चिंतक , लेखक , कवि , ओजस्वी वक्ता और प्रखर राजनेता थे। साल 1966 में आज ही के दिन उनका देहांत हुआ था।
सावरकर का जन्म नासिक के भागुर गॉव में हुआ था। उनकी माता जी का नाम राधा बाई और पिताजी का नाम दामोदर पंत था। सावरकर जी का जन्म आर्थिक रूप से कमजोर परिवार में हुआ था जिस वजह से उन्होंने गरीबी को बेहद करीब से देखा था।
सावरकर को लेकर देश दो मतों में बटा हुआ है कोई इन्हे देश भक्त मानता है, तो किसी के लिए इनकी छवि बिलकुल अलग है।
क्या सच में मांगी थी अंग्रेज़ो से माफ़ी ?- सावरकर को लेकर हमेशा एक सवाल सत्ता के गलियारों से लेकर लोगो के जहन में उठता है कि क्या सावरकर ने अंग्रेज़ो से माफ़ी मांगी थी ? हालांकि कई लोग इस विषय में दलील देते हुए उनके अंग्रेजी हुकूमत को लिखे हुए पत्र दिखाते हुए इस बात सत्य मानते है तो कई लोगो का इस विषय में अलग ही विचार है।
इतिहासकार और लेखक विक्रम संपत ने अपनी किताब ‘Savarkar- Echoes From Forgotten Past’ नामक बुक में सावरकर द्वारा लिखी गयी चिठ्ठी और सावरकर से जुडी हुई कुछ ऐसी बातें लिखी है जिसे बहुत ही कम लोग जानते है।
उन्होंने सावरकर के अंग्रेजी हुकूमत को लिखी मर्सी पेटिशन के बारे में कहा कि सावरकर द्वारा लिखी गयी पेटिशन कोई मर्सी पेटिशन नहीं थी ,बल्कि एक साधारण पेटिशन थी। ये वही खत है जिससे कई लोगो में यह धारणा बनी कि जेल जाने के बाद सावरकर ने अंग्रेजी हुकूमत से माफ़ी मांगी ताकि वह जेल से रिहा हो सके।
लेकिन इसपर इतिहासकार विक्रम संपत की अलग राय है। उन्होंने अपनी किताब में ऐसी बातें लिखी है जो अधिकतर लोगो को मालूम नहीं है। विक्रम कहते है जिस तरह राजबंदी को एक वकील करके अपना केस करने की छूट होती है, उसी तरह पेटिशन देने की भी छूट दी गयी थी।
सावरकर को 50 साल आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी थी और तब वे मात्र 28 साल के थे । जेल से लौटने तक वह 78 साल के हो जाते और तब वह न अपने परिवार को आगे बढ़ा पाते और न देश की आज़ादी की लड़ाई लड़ पाते। सावरकर की मंशा थी कि वह देश के लिए कुछ करे। गाँधी जी ने भी लिखा था कि सावरकर मेरे साथ शांति के रास्ते पर चलकर काम करेंगे तो आप इनको रिहा कर दीजिये।
अंग्रेजी हुकूमत द्वारा दी जाने पेंशन पर उठते सवाल – अंग्रेजी हुकूमत द्वारा उनको पेंशन दी जाती थी अक्सर इस पर भी कई सवाल उठते है। इसपर भी विक्रम संपत जी ने अपनी किताब में लिखा है कि अंग्रेज़ो ने उनकी सभी डिग्रीयां और सम्पति जब्त कर ली थी और उन्हें काम करने की छूट नहीं दी थी और यही कारण था कि उनको पेंशन दी जाती थी। उस समय अंग्रेज़ो ने कहा था कि हम आपको काम करने की छूट नहीं दे सकते , आपकी देखभाल हम करेंगे।
कैसे हुई मृत्यु – उनकी मृत्यु के बारे में कई सवाल उठते है कि आखिर उनकी मृत्यु कैसे हुई ? दरअसल ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने इच्छा मृत्यु को ग्रहण किया था।
26 फरवरी 1966 में उनका देहांत हुआ था। उन्होंने अपनी मृत्यु से एक महीने पहले उपवास करना शुरू कर दिया था। अपने खाने पीने के साथ उन्होंने दवा भी छोड़ दी थी, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गयी थी।
सावरकर इच्छा मृत्यु के समर्थक भी थे , उन्होंने कहा था कि ‘आत्महत्या और आत्मत्याग के बीच अंतर होता है’। सावरकर ने तर्क दिया था कि निराश आदमी अपने जीवन से हारकर आत्महत्या करता है और जब उसके जीवन का मिशन पूरा हो जाने पर और उसका शरीर कमजोर हो चुका हो तो वह अपने जीवन का अंत कर सकता है।
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