भारत देश ऋषि-मुनि और साधु संतो की जन्म भूमि है। यहाँ कई धर्माताओ ने जन्म लेकर भारत की भूमि को धन्य और पवित्र किया है। इन्ही संतो में से एक नाम आता है संत रविदास जी का। रविदास जी बेहद ही सरल हृदय के थे उनका व्यवहार बेहद कोमल था। इनका जन्म माघ पूर्णिमा के दिन बताया जाता है और उसी के अनुसार इनकी जयंती मनाई जाती है।
जीवन परिचय – संत रविदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था। उनके जन्म के बारे में अलग अलग अलग राय है। लेकिन इतिहासकार यह बात मानते है कि उनका जन्म माघ पूर्णिमा में साल 1450 में हुआ था। उनके पिता का नाम संतोख दास और माता का नाम कलसा देवी था। कहा जाता है कि जिस दिन रविदास जी का जन्म हुआ था उस दिन रविवार था इसीलिए उनका नाम रविदास पड़ा।
उनके पिताजी चमड़े के जूते बनाने और मरम्मत करने का काम करते थे। रविदास जी भी अपने पितजाजी का हाथ बटाया करते थे, लेकिन अपनी दयालू प्रवत्ति के कारण वह जिस भी साधु संत को नंगे पॉव देखते थे उन्हें जूते दे दिया करते थे। उनके इस व्यवहार से परेशान होकर उनके पिताजी ने उन्हें घर से निकाल दिया था।
प्रारम्भिक शिक्षा – रविदास जी एक समाज सुधारक थे। वह बचपन में अपने गुरु शारदा नन्द की पाठशाला गए हालांकि बाद में कुछ उच्च जाति के लोगो द्वारा उनको रोका गया। रविदास जी को शिक्षा देते हुए उनके गुरु पंडित शारदानंद ने महसूस किया कि वह कोई साधारण बालक नहीं है बल्कि ईश्वर द्वार भेजी गयी संतान है। रविदास जी की लगन और व्यहवार देख कर उन्हें पता था कि वह एक दिन बहुत बड़े समाज सुधारक बनेंगे।
विवाह – संत रविदास का मन अपने पिताजी के काम में बिलकुल नहीं लगता था , जिसकी चिंता उनके पिताजी को हमेशा रहती थी। अपनी चिंता को दूर करने के लिए उन्होंने रविदास जी का विवाह बहुत कम उम्र में लोना देवी से कर दिया। इस विवाह से रविदास जी को पुत्र प्राप्ति भी हुई , जिसका नाम विजयदास पड़ा। शादी के बाद रविदास जी इस तरह से सांसारिक मोह में पड़े कि वह सब कुछ भूल गए , इस बात से दुखी होकर उनके पिताजी ने उन्हें उनके परिवार का भरण पोषण करने की ज़िम्मेदारी दे दी। अपने परिवार की ज़िम्मेदारी आते ही रविदास जी समाज से जुड़ गए।
संत बनने की कहानी – पौराणिक कथाओ के अनुसार बचपन में रविदास जी खेलने के लिए गए। वहां उनका दोस्त खेलने नहीं आया जब रविदास जी उसे लेने गए तो पता चला उसकी मृत्यु हो चुकी है। तब भावविभोर होकर रविदास जी ने अपने मरे हुए दोस्त को खेलने के लिए उठाया और कहा जाता है कि रविदास जी के कहने पर उनका मरा हुआ मित्र जीवित हो गया था। ऐसा कहा जाता है कि रविदास जी में बचपन से ही दिव्यता और अलौकिक शक्तियां थी। लेकिन जैसे जैसे समय बीतता चला गया उन्होंने अपनी ऊर्जा भगवान राम और कृष्ण को समर्पित कर दी थी। धीरे धीरे वह लोगो की भलाई करते करते संत बन गए।
पवित्र नदी में स्नान – रविदास जयंती के दिन इनके अनुयायी नदी में स्नान करते है। यह दिन उनके लिए किसी उत्सव से कम नहीं होता है। उनके जन्म स्थान पर लाखो लोग पहुंचते है। इस उत्सव में संत रविदास जी के भजन , किर्तन और दोहे भी गाए जाते है।
संत रविदास जी के कुछ दोहे जो आज के समय में भी प्रसांगिक है
1.रविदास ‘ जन्म के कारनै , हौत न कोउ नीच,
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम कीच
इसका अर्थ है कि जन्म से कोई नीच नहीं होता बल्कि कर्मो से नीच बनता है
2. करम बंधन में बंध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास
इसका अर्थ है कि हमे अपना कर्म करते रहना चाहिए और कर्म से मिलने वाले फल की आशा भी नहीं छोड़नी चाहिए , क्योंकि कर्म करना हमारा धर्म है तो फल पाना हमारा सौभाग्य
3. जनम जाट मत पूछिए , का जाट अरु पात
रैदास पूत सब प्रभु के , कोए नहि जाट कुजात
रविदास जी कहते है किसी की जाती नहीं पूछनी चाहिए , क्योंकि संसार में कोई जाति -पाति नहीं है। सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान है, यहाँ कोई जाति, बुरी जाति नहीं है ।
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