डायरेक्ट सेलिंग नाउ समस्त डायरेक्ट सेलिंग परिवार की ओर से देश के लिए हसते हसते सूली पर चढ़ने वाले शहीद भगत सिंह , शहीद राजगुरु और शहीद सुखदेव के शहीदी दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए उन्हें नमन करता है।
जब देश की आज़ादी के समय को याद करते है तो जेहन में सबसे पहले तीन नाम उभर कर आते है और वो नाम है भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव। ये वो नाम ही जो हमारे देश को आज़ादी दिलाने के लिए सूली पर हसते हसते चढ़ गए।अपनी जवानी में फांसी के फंदे पर झूलते हुए इनके मुख पर एक पल भी निराशा की भावना नहीं आयी। देश प्रेम की भावना इनके दिलो में इस तरह से भरी हुई थी कि इन्होने यह भी नहीं सोचा कि इनके आगे जीवन बड़ा हो सकता है और कूद पड़े आज़ादी की लड़ाई में।
आज पूरा देश शहीदी दिवस मना रहा है। आज से 92 साल पहले भगत सिंह , राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेज़ो को द्वारा फांसी पर चढ़ाया गया था।
आज उनकी शाहदत को पूरा देश सच्चे दिल से सलाम कर रहा है। भारत देश को आज़ादी दिलाने के लिए इन वीर सपूतो ने अपनी जवानी न्यौछावर कर दी। 23 मार्च 1931 को इन तीनो को फांसी दी गयी थी। इस दिन तय घंटे से 12 घंटे पहले 7 बजकर 33 मिनट में उन्हें फांसी दे दी गयी थी।
भगत सिंह चाहते थे युद्धबंदी जैसा सलूक – भगत सिंह कभी भी फांसी से डरे नहीं और न ही उन्हें मृत्यु का कभी भय हुआ बस वो हमेशा से एक युद्धबंदी वाली मृत्यु चाहते थे।
उन्होंने अपने खत में भी लिखा था कि ‘जीने की इच्छा मुझमे भी है लेकिन मेरे मन में कभी फांसी से बचने का लालच कभी नहीं आया’ . 24 मार्च को उन्हें फांसी दी जानी थी, लेकिन भगत सिंह इस फैसले से खुश नहीं थे और उन्होंने 20 मार्च 1931 को उन्होंने पंजाब के गवर्नर को पत्र लिख कहा था कि उनके साथ युद्धबंदी जैसा सलूक किया जाए और फांसी की जगह उन्हें गोलियों से उड़ा दिया जाये।
घर का खाना चाहते थे भगत सिंह – जब भगत सिंह जी को पता चला कि उन्हें अगले दिन फांसी होने वाली है तो उन्होंने घर के खाने का अनुरोध किया , लेकिन उन्हें वह खाना नहीं दिया गया। हालांकि इस बात पर उन्होंने कोई नाराजगी नहीं जताई और जब उन्हें पता चला कि उन्हें 23 की शाम को ही फांसी दे दी जाएगी तब उन्होंने अपनी फांसी से दो घंटे पहले अपने वकील से पहले अपनी किताब ‘रिवाल्यूशनरी लेनिन’ ली और उसे पढ़ने लगे।
क्यों मिली थी फांसी की सजा – 30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन विरोध में जुलूस निकला जिस पर पंजाब के सुपरिटंडन जेम्स ए स्कॉट ने लाठी चार्ज किया।
इस लाठी चार्ज में लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गए , जिसके बाद लगभग 18 दिन बाद इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गयी। जिससे भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु बेहद क्रोधित हुए और उन्होंने जेम्स ए स्कॉट की हत्या का प्लान बनाया और 17 दिसंबर 1928 को तीनो अपने बनाये गए प्लान के तहत पुलिस हेडक्वाटर के बाहर पहुंच गए।
हालांकि स्कॉट की जगह असिस्टेंट सुपरिटंडन ऑफ़ पुलिस जॉन पी सांडर्स बाहर आ गया और भगत और राजगुरु ने उसे स्कॉट समझकर भून डाला। जिसकी सजा के तौर पर उन तीनो को फांसी की सजा सुनाई गयी थी। जब वे अदालत में बम गिराकर अपनी आवाज बुलंदी से पहुंचाने गए थे तभी वही उन्होंने अपनी गिरफ्तारी भी दी।
बम हमले के लिए उन्हें पहले आजीवन कारावास की सजा सुनाई गयी थी, लेकिन जब सांडर्स की हत्या भी तीनो ने ही की यह पता चला तो उन्हें दूसरी जेल में ट्रांसफर कर दिया गया और उन्हें फांसी की सजा सुना दी गयी।
तीनो को मिली फांसी की सज़ा के चलते जनता में भारी आक्रोश था ,जिसके कारन उन्हें 24 की जगह 23 मार्च यानि एक दिन पहले ही फांसी दे दी गयी।
मात्र 23 साल की उम्र में भगत सिंह बिना उफ़ तक किये फांसी में चढ़ गए थे।