‘डायरेक्ट सेलिंग नाउ समस्त डायरेक्ट सेलिंग इंडस्ट्री की तरफ से महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती पर उन्हें शत शत नमन करता है’
ज्योतिबा फुले ने देश के पहले महिला विद्यालय की स्थापना की थी। उन्होंने देश और समाज के लिए अपने कई बहुमूल्य योगदान दिए थे। महात्मा ज्योतिबा फुले को महात्मा गाँधी से पहले महात्मा की उपाधि से नवाज़ा गया था। इन्होने नारी सम्मान , दलित समाज और पिछड़ो के अधिकारों लड़ाई लड़ी थी। यही नहीं इन्हे हमारे संविधान के जन्मदाता भीम राव अम्बेडकर जी भी अपना पहला शिक्षक मानते थे ।
जन्म – ज्योतिबा फुले का जन्म पुणे में 11 अप्रैल 1827 में हुआ था। इनका पूरा नाम ज्योराव गोविंदराव फुले था। इनका परिवार कई समय से पुणे में आकर माली का काम करता था जिसके कारण ही इनके परिवार को फुले नाम से जाना जाता था। इनके पिताजी का नाम गोविंदराव फुले और माता का नाम चिमणाबाई था। जब ज्योतिबा फुले मात्र एक वर्ष के थे तभी उनकी माता का देहांत हो गया था।
ज्योतिबा फुले जी एक दलित परिवार से थे, जिसके कारण उन्हें बहुत भेददभाव का सामना करना पड़ा था। उन्हें पढ़ाई का बहुत शौक था, जिसके चलते उन्होंने गांव के एक स्कूल में ही जाना शुरू किया लेकिन वहां उनका बहुत विरोध हुआ जिसके चलते उनके पिताजी ने उनकी पढ़ाई बीच में ही बंद करवा दी।
लेकिन ज्योतिबा फुले कहा रुकने वाले थे, उनका पढ़ाई के प्रति रुझान को देखते हुए उर्दू फ़ारसी के विद्वान गफ्फार बेग और ईसाई पादरी लिजीट ने उनके पिताजी को उन्हें स्कूल भेजने के लिए मना लिया।
वैवाहिक जीवन – ज्योतिबा फुले का विवाह सन 1840 ई में सावित्री बाई फुले के साथ हुआ था। जब उनका विवाह सावित्री बाई से हुआ था, तब वह बहुत कम आयु की थी और पढ़ना चाहती थी। हालांकि उस समय महिलाओ को पढ़ने की इजाजत नहीं दी जाती थी ,लेकिन ज्योतिबा फुले जी ने अपनी पत्नी को पढ़ाया।
विद्यालय की स्थापना – उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर पहले महिला विद्यालय की स्थापना 1848 में की, जिसमे उन्होंने महिलाओ को पढ़ाया। उन्हें इस विद्यालय में पढ़ाने के लिए कोई महिला शिक्षक नहीं मिली, जिस वजह से उन्होंने अपनी पत्नी को ही इस कार्य के लिए तैयार किया दोनों ने साथ मिलकर स्त्री शिक्षा और दलितों को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए बहुत कार्य किये।
ज्योतिबा फुले बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह एक बेहतरीन समाज सुधारक होने के साथ साथ एक बहुत ही उच्च लेखक और साहित्यकार भी थे। इनकी साजसेवा को देखते हुए मुंबई की एक विशाल सभा में 11 मई 1888 ईo को विट्ठलराव कृष्णजी वंडेकर जी ने इन्हे महात्मा की उपाधि से सम्मानित किया।
KEEP WATCHING ONE AND ONLY NEWS CHANNEL OF DIRECT SELLING INDUSTRY