देश की आज़ादी में हम हमेशा उन्हें याद तो करते है जिन्होंने देश को आज़ाद दिलाने कड़ा संघर्ष किया लेकिन अक्सर उन्हें भूल जाते है जिन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से देश के जन जन को जागरूक करने में अहम भूमिका अदा की थी।
उन्ही साहित्यकारों में से एक नाम है महान साहित्यकार और स्वतंत्रता सैनानी बंकिम चंद्र चटोपाध्याय उर्फ़ चटर्जी का । उन्होंने अपनी अमर और महान लेखन से आज़ादी की लड़ाई में जान फुकने का काम किया, यही नहीं उन्होंने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं के माध्यम से साहित्य को भी मजबूती प्रदान की।
उन्होंने 1874 में वन्दे मातरम गीत लिख कर न केवल स्वतंत्रता सेनानियो में जोश भरा बल्कि यह आज भारत के राष्ट्र गीत के रूप में भी जाना जाता है
बंकिम चंद्र जी का जन्म 27 जून 1838 को पश्चिम बंगाल में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआत की पढ़ाई मेदिनीपुर में की और उसके बाद उन्होंने हुगली में आगे की पढ़ाई की।
वह हमेशा से एक होनहार छात्र थे , उन्हें साहित्य में शुरू से ही बहुत ज़्यादा रूचि थी।
बंकिम जी ने अपनी पढ़ाई पूरी कर सरकारी नौकरी हासिल की और साल 1891 में वह सेवानिवृत हुए।
लेखनी में बनाई अपनी अलग पहचान – बंकिम चंद्र जी को साहित्य में अत्यधिक रूचि थी , उन्होंने बंगला और हिंदी दोनों भाषाओं में अपनी लेखनी से एक अलग पहचान बनायी।
उन्होंने अपने साहित्यों से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों का प्रेरणास्त्रोत और उद्घोष बन गए।
कैसे हुई वन्दे मातरम की रचना – बंकिम चंद्र जी ने 1874 में देशभक्त की भावना जगाने वाला गीत वन्दे मातरम गीत की कहानी बहुत रोचक है।
जानकारी के अनुसार अंग्रेजी हुक्मरानो ने इंग्लैंड की महारानी के सम्मान वाले गीत ‘गॉड सेव द क्वीन’ को हर कार्यक्रम में गाना अनिवार्य कर दिया था। इस सभी से देशवासी बेहद आहत हुए थे , जिसके जवाब में बंकिम चंद्र जी ने वन्दे मातरम शीर्षक गीत की रचना की थी।
इस गीत के भाव में भारत को माता कहकर सम्बोधित किया गया था। इस गीत को 1882 में उपन्यास आनंदमठ में शामिल किया गया था, इसके बाद इसे राष्ट्रीय गीत बनाया गया था।
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