‘डायरेक्ट सेलिंग नाउ सभी महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं देता है। इनके अद्वित्य योगदान से समाज को संस्कार , विचार और आकार प्राप्त हुए। उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों और अदम्य साहस ने हर छण हमारे ह्रदयो को गौरान्वित किया है’
पूरा विश्व अंतरराष्ट्रिय महिला दिवस मना रहा है। हर साल यह दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है , यह दिन महिलाओ के सम्मान में अर्पित किया गया है।
आज महिलाये हर क्षेत्र में आगे बढ़ कर न केवल नाम रोशन कर रही है बल्कि वह सफलता की नयी इबारत भी लिख रही है।
तो चलिए आज जानते है भारत की उन महिलाओ के बारे में जिन्होंने न केवल लीक से हटकर अपनी पहचान बनाई बल्कि लाखों करोड़ो महिलाओं एक लिए प्रेरणा का एक स्तम्भ भी स्थापित किया।
सुधा मूर्ति – यह एक ऐसा नाम जिससे सभी भारतीय भली भाती परिचित है। वो न केवल साधारण तरीके से जीवन जीने वाली महिला है बल्कि एक मशहूर लेखिका भी है। उनकी लघु कथाएं बहुत प्रचलित है। इन्फोएसिस की चेयरपर्सन होने के बावजूद वो बेहद साधारण जीवन जीती है, जो की बेहद प्रेरणादायक है।
सुधा मूर्ति का जन्म कर्नाटक के शिगगांव के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम आर एच कुलकर्णी और माता का नाम विमला कुलकर्णी था। शुरू से ही एक शिक्षित माहोल में उनकी पालना हुई, जिसके कारण उनके मन में कुछ असाधारण करने का जुनून था। उन्होंने बी वी बी कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग से स्नातक करने के बाद कंप्यूटर साइंस में मास्टर डिग्री हासिल की। सुधा बताती है कि वो पुरे कॉलेज में अकेली महिला थी।
सुधा जी ने ऐसे समय में उच्तम डिग्री हासिल की जब लड़कियों को केवल चूल्हा चोके तक ही सीमित रखा जाता था।
उनके जीवन का एक किस्सा बेहद ख़ास है जो दर्शाता है कि सुधा मूर्ति कितनी बोल्ड और आवाज़ उठाने वाली महिला थी।
एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने बताया कि अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वह नौकरी की तलाश कर रही थी, तभी उन्होंने टाटा ग्रुप में इनजीनियर की नौकरी के लिए विज्ञापन देखा , लेकिन उसमे लिखा था कि केवल पुरुष ही इसके लिए आवेदन कर सकते है। इस बात से सीधा मूर्ति बेहद आहत हुई। उन्होंने जेआरडी टाटा को खत लिखकर अपनी आपत्ति जताई। उन्होंने पत्र में लिखा कि यह विज्ञापन कंपनी की पुरातनवादी सोच को दर्शाता है। इस पत्र को पढ़ने जेआरडी टाटा ने तुरंत हस्तक्षेप किया और सुधा जी को तार भेज इंटरव्यू के लिए बुलाया। सुधा जी ने न केवल इंटरव्यू पास किया, बल्कि टाटा के शॉप फ्लोर पर काम करने वाली पहली महिला भी बनी।
मैरी कॉम – मैरी कॉम ओलिंपिक और कॉमनवैल्थ गेम्स में महिला मुक्केबाजी के लिए पदक जितने वाली पहली महिला थी। मैरी कॉम को साल 2006 में पधश्री साल 2013 में पद्यभूषण से भी सम्मानित किया गया। उनका जन्म 1 मार्च 1983 में मणिपुर के चूराचांदपुर ज़िले में हुआ था। उनका पूरा नाम मैंगत चंग्नेइजैंग मैरी कॉम है। उनके पिता का नाम मंगते टोनपा कोम और उनकी माता का नाम मंगते अखम कोम है। मैरी कॉम को बचपन से ही बॉक्सिंग में बहुत रूचि थी, साल 2000 में डिंगको सिंह से उन्होंने ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी थी। मैरी कॉम एक गरीब किसान के घर पैदा हुई थी।
इन्होने अपने नाम 6 गोल्ड मैडल किये है और ऐसा कर वो दुनिया की पहली महिला बॉक्सर बन गयी। लेकिन उनका ये सफर बेहद मुश्किलों से भरा रहा और अपनी मेहनत और संघर्ष के दम पर उन्होंने इसे हासिल किया।
मैरी कॉम ने 15 साल की उम्र में यह निर्णय ले लिया था कि वह बॉक्सर बनेगी पर वह अपने माता पिता से छुपकर बॉक्सिंग सीखती थी क्योंकि उनके माता पिता उनकी बॉक्सिंग का सपोर्ट नहीं करते थे। वह नहीं चाहते थे कि मैरी के चेहरे पर कोई चोट आए जिससे की उसकी शादी में परेशानी न हो जाये।
उसके बाद साल 2000 में मैरी कॉम ने स्टेट बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती। जब उनकी इस उपलब्धि के बारे में टीवी पर दिखाया गया तब उनके घर वालो को उनके बॉक्सिंग करने के बारे में पता चला। इसके बाद मैरी को उनके माता पिता का सपोर्ट मिलना शुरू हो गया। साल 2001 में AIBA वीमेन वर्ल्ड चैंपियन में सिल्वर मैडल अपने नाम किया और साल 2002 में इसी चैंपियनशिप में मैरी कॉम ने गोल्ड मैडल अपने नाम किया। मैरी कॉम की सफलता का परचम यही पर नहीं रुका साल 2003 में उन्होंने एशियाई ओपन चैपियनशिप जीती और साल 2005 में वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी सफलता हासिल की। साल 2006 में उन्होंने लगातार 3 बार वर्ल्ड चैंपियनशिप जीत कर सफलता हासिल की। साल 2007 में जुड़वाँ बच्चों को जन्म देने के बाद उन्होंने बॉक्सिंग छोड़ दी थी , लेकिन उनके पति ने उन्हें बहुत उत्साहित किया। पति के उत्साहित करने पर मैरी कॉम ने बॉक्सिंग फिर से ज्वाइन करली और इसके बाद लगातार उन्होंने सफलता के शिखर को हासिल किया। आज मैरी कॉम के तीन बच्चे है और वो कई सारी उपलब्धियां अपने नाम करवा चुकी है।
नीना गुप्ता – आज के समय में हम सभी मॉर्डन हो गए है , महिलाओ को अपने फैसले लेने का अधिकार दिया जाने लगा है और कही न कही समाज में महिलाओ को लेकर सोच में परिवर्तन देखने को मिलता है। लेकिन नीना गुप्ता ने ऐसे समय में एक आत्मविश्वासी महिला के रूप में खुद को साबित किया जब समाज में महिलाओ के लिए बहुत सी रूढ़िवादी सोच थी।
नीना का जन्म 4 जुलाई 1959 में दिल्ली में हुआ था। उन्होंने अपने करियर से लेकर अपने निजी जीवन तक में बेहद संघर्ष और मेहनत से काम लिया। आज उन्हें पूरा देश बेहतरीन अदाकारा और एक स्ट्रांग महिला के तौर पर जानता है , लेकिन इस जगह तक पहुंचने के लिए नीना गुप्ता ने बहुत मेहनत की।
मात्र 16 साल की उम्र में नीना ने एक लड़के से शादी की लेकिन वह शादी ज़्यादा नहीं चल पायी। इसके बाद नीना गुप्ता ने फिल्मो और टेलीविज़न में अपना नाम बनाना शुरू कर दिया।
अपने करियर के दौरान नीना की मुलाकात वेस्टनडीस के दिग्गज क्रिकेटर विविएन रिचर्ड से हुई, जिसे उन्होंने डेट किया और उनकी एक बेटी भी हुई ।
उन्हें पता था विवियन उनसे शादी नहीं कर सकते इसके बावजूद उन्होंने अपनी बेटी को जन्म दिया और एक स्ट्रांग महिला और स्ट्रांग सिंगल मदर के रूप में अपनी पहचान बनाई।
नीना ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके कई दोस्तों ने उनकी बेटी को अपना नाम देने के लिए उनसे शादी का प्रस्ताव रखा था, लेकिन उन्होंने साफ इंकार कर दिया और खुद के दम पर अपनी बेटी को पाल पोस कर बड़ा किया।
जीवन की इन सभी परेशानियों के बावजूद नीना गुप्ता ने अपने एक्टिंग के दम पर अपना करियर बनाया और नेशनल अवार्ड के साथ साथ फिल्मफेयर और कई अन्य अवार्ड अपने नाम दर्ज करवाए है।