Wednesday, December 24, 2025
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रोटी, कपड़ा और मकान से आगे… भारत की असली लड़ाई: शिक्षा और चिकित्सा !

By: Pushkar Misra- जब अमिताभ बच्चन की फ़िल्म “रोटी, कपड़ा और मकान” आई थी, तब यही तीन आवश्यकताएँ एक सामान्य भारतीय के जीवन का आधार मानी जाती थीं।समय बदला है, इसलिए हमारी प्राथमिकताओं को भी बदलना चाहिए था।लेकिन आज की वास्तविकता कुछ और ही कहानी कहती है।आज रोटी की कमी नहीं है — बाज़ार से लेकर फुटपाथ तक खाने-पीने की वस्तुओं की भरमार है।कपड़ों की कमी नहीं है — आलमारियाँ इतनी भरी रहती हैं कि उन्हें बंद करना भी कठिन हो जाता है।

मकान इतनी संख्या में बन चुके हैं कि जंगल अब कंक्रीट के बनते जा रहे हैं। नदियाँ, नाले और खेत धीरे-धीरे इमारतों में बदलते जा रहे हैं।

लेकिन इस भौतिक प्रगति के बीच दो सबसे आवश्यक स्तंभ पीछे छूट गए हैं —

* शिक्षा

* चिकित्सा

भारत आज कहाँ खड़ा है? (सटीक स्थिति)

* संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार:

* भारत की मानव विकास सूचकांक (HDI) रैंक: 130 / 193 देश

* भारत का HDI स्कोर: 0.685 (2022 में यह 0.676 था)

* 2022 में भारत की रैंक 133 थी, जो अब 130 हुई है

 HDI रैंकिंग तीन प्रमुख आधारों पर तय होती है:

* शिक्षा

* स्वास्थ्य (चिकित्सा)

* आय और जीवन स्तर

इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि विश्व की सबसे बड़ी आबादी वाला देश होने के बावजूद भारत अभी “उच्च मानव विकास” की श्रेणी में नहीं पहुँच पाया है।

भारत अभी भी “मध्यम मानव विकास” श्रेणी में ही आता है, अर्थात शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर—तीनों क्षेत्रों में अभी लंबा रास्ता तय करना शेष है।

शिक्षा: इमारतें बढ़ीं, गुणवत्ता नहीं

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत के 54 संस्थान विश्व रैंकिंग में शामिल हुए हैं, जो निश्चित रूप से एक सकारात्मक संकेत है।

परंतु यह केवल कुछ चुनिंदा विश्वविद्यालयों की उपलब्धि है, 140 करोड़ नागरिकों की शिक्षा व्यवस्था की वास्तविक तस्वीर नहीं। विद्यालय स्तर पर आज भी कई गंभीर चुनौतियाँ मौजूद हैं:

* शिक्षा की गुणवत्ता

* शिक्षकों का प्रशिक्षण

* सरकारी विद्यालयों की स्थिति

* व्यावहारिक एवं कौशल-आधारित शिक्षा की कमी

* चिकित्सा: अस्पताल बढ़े, इलाज महँगा

भारत स्वास्थ्य पर GDP का 2% से भी कम खर्च करता है।अस्पतालों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन अधिकांश उपचार आम नागरिक की पहुँच से बाहर हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों, छोटे शहरों और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ आज भी एक सपना बनी हुई हैं। यही कारण है कि भारत में गरीबी का एक बड़ा कारण बीमारी और इलाज का खर्च भी है।

परिणाम: असुरक्षा और भ्रष्टाचार का फैलाव

जब शिक्षा कमजोर होती है और चिकित्सा असमान छूती है, तो समाज में निम्न समस्याएँ जन्म लेती हैं:

* रिश्वतखोरी

* मिलावट

* धोखाधड़ी

* जालसाज़ी

* व्यवस्था के प्रति अविश्वास

यह सब इतना सामान्य हो चुका है कि लोगों को लगता है—“ऐसा ही चलता है।”

जनता: नागरिक या केवल वोट बैंक?

व्यवस्था और नेतृत्व ने आम नागरिक को केवल वोट देने वाली भीड़ समझना शुरू कर दिया है। मानो नागरिक का जन्म सिर्फ़ चुनाव के समय एक बटन दबाने के लिए हुआ हो। नागरिक की शिक्षा, स्वास्थ्य और समग्र विकास पर दीर्घकालिक सोच और ठोस योजनाएँ बहुत कम दिखाई देती हैं।

भारत में अमीरी–गरीबी की गहरी खाई:

अमीर और अधिक अमीर और  गरीब और अधिक गरीब होते जा रहे हैं,देश पर भी कर्ज़ बढ़ रहा है और आम नागरिक कर्ज़ और ईएमआई में जीवन जीने को मजबूर है

क्या 2047 तक “विकसित भारत” संभव है?

प्रश्न बड़ा है और समय सीमित—केवल 22 वर्ष।

क्या इतने कम समय में भारत एक विकसित राष्ट्र बन सकता है?

हाँ, यह संभव है। लेकिन तभी, जब हम “रोटी, कपड़ा और मकान” से आगे बढ़कर

शिक्षा और चिकित्सा को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता बनाएँ।

निष्कर्ष: बदलाव अभी और यहीं आवश्यक है

यदि हमें 2047 तक एक विकसित भारत देखना है, तो हमें अपनी प्राथमिकताओं को स्पष्ट रूप से बदलना होगा:

* गुणवत्तापूर्ण शिक्षा

* सुलभ और आधुनिक चिकित्सा

* पारदर्शी व्यवस्था

* जिम्मेदार नागरिकता

* पर्यावरण संरक्षण

* और दूरदर्शी नेतृत्व

इन्हीं आधारों पर एक सशक्त, आत्मनिर्भर और विकसित भारत की नींव रखी जा सकती है।

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