वारेन बफेट ने कभी कहा था ‘ ईमानदारी काफ़ी महंगा तोहफ़ा है, इसे सस्ते लोगों से पाने की उम्मीद ना रखें । बात बिल्कुल सही है ईमानदार होना काफ़ी कठिन काम है। हमें लग जरूर सकता है कि हम ईमानदार हैं लेकिन अगर ध्यान से अपना मूल्यांकन करें तो 2 मिनट में पता चल जायेगा कि हम कितने ईमानदार हैं। कई लोगों का ऐसा मानना है कि आप सबको धोखा दे सकते हैं पर खुद को नहीं ,लेकिन संभव तो ये भी हो सकता है कि आप बेहोशी में जीने के आदि हो चुके हों और स्वयं को भी धोखा दिए जा रहें हों।
हम स्वयं को कई प्रकार से धोखा देते हैं उनमें सबसे प्रमुख तरीका है ‘बहाने बनाना’ हमारे द्वारा बनाए जाने वाले बहाने सिर्फ़ दुनिया को धोखा नहीं दे रहें होते वो हमें भी धोखा दे रहें होते हैं। मैं कल से इस काम को शुरू करूंगा, आज मेरा मन नहीं है, अभी तो बहुत वक्त है पढ़ लूंगा बाद में, मुझे समझ ही नहीं आता तो मैं क्या कर सकता हूं, मुझसे तो ये काम नहीं होगा, मुझे नहीं पता कि नंबर कम क्यों आए, मैं कुछ बड़ा नहीं कर सकता । ऐसे न जाने कितने वाक्यों से हम हर रोज़ अपनी ज़िंदगी को ठग रहें होते हैं और ऐसा करते करते एक दिन यही सारी बातें हमारा सच बन जाती हैं और हम इनके गुलाम बन कर खुद को फंसा चुके होते हैं। जितनी जल्दी हो सके आपको ये जान लेना चाहिए कि आप स्वयं को कितना ठग रहें हैं और क्यों ठग रहें हैं, क्योंकि जब तक ठगना बंद नहीं होगा तब तक ईमानदार होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
अपने जीवन को ध्यान से देखिए और अपने रोज़ के काम को ध्यान से देखिए. आपको पता चलेगा कि आपने खुद को कैसे कमज़ोर बना के रखा है। आपको साफ दिखेगा कि आपने अपने आराम के लिए कितने सारे कार्यों को अभी तक टाल रखा है। आप समझ पाएंगे कि कैसे आप हर लक्ष्य को तय करने के बाद खुद को कंफर्ट ज़ोन में फेंक देते हैं और फिर शानदार बहाने बना कर दूसरों पर अपनी असफलता का ज़िम्मा थोप देते हैं। ये सब देखना, महसूस करना दुखद और भयानक हो सकता है लेकिन इसके बिना आप खुद सोचिए क्या ईमानदार होना कभी संभव हो पाएगा।
आज हम कुछ भी स्वीकार करने को तैयार हैं लेकिन ये नहीं स्वीकार करना चाहते कि अगर हम पिछले 5 वर्षों में स्वयं के प्रति और स्वयं के कार्य के प्रति सच में ईमानदार होते तो शायद आज हम अपनी ज़िंदगी में काफ़ी आगे होते।
याद रखिए अगर आपकी संगति आपको और अधिक ईमानदार होने में सहायता नहीं कर रही तो आप एक गलत संगति में अपना वक्त और जीवन बर्बाद कर रहें हैं। ऐसी संगति से जितनी जल्दी हो सके दूरी बनाना शुरू कर दीजिए। आज 90% लोग सिर्फ़ गलत संगति के कारण स्वयं के प्रति ईमानदारी से काफ़ी दूर खड़े हैं। अंदर से जागना है तो स्वयं से सवाल कीजिए कि आखिर कब तक खुद को ठगते रहना है, कब तक किताबों से दूर रहना है, कब तक जैसे थे वैसा ही रहना है, कब तक बहानों के सहारे साधारण बन कर जीवन जीना है। एक दिन तो जागना होगा ही तो आज से ही क्यों न जागें? ईमानदारी के साथ अगर एक साल भी जीवन जी लिया तो आप वो कर जायेंगे जो अभी तक नहीं कर पाएं हैं इसलिए जागिए और ईमानदार होने का प्रण कीजिए।
जय हिंद, जय ज़िंदगी!