Abdul Ghaffar Khan: खान अब्दुल गफ्फार खान, को फ्रंटियर गांधी और बादशाह खान भी कहते थे। यह एक पश्तून स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश राज के शासन को खत्म करने के लिए अभियान चलाया था। शांतिवाद के पालन और महात्मा गांधी के साथ घनिष्ठ संबंध के कारण, उन्हें “फ्रंटियर गांधी” उपनाम दिया गया था।
साल 1929 था, जब स्वतंत्रता सेनानी और भारत रत्न अब्दुल गफ्फार खान ने खुदाई खिदमतगार (“भगवान के सेवक”) आंदोलन शुरू किया। लेकिन यह आंदोलन इतना आसान नहीं था, उन्हें और उनके साथियों को ब्रिटिशों की कठोर कार्रवाई का सामना करना पड़ा, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे दमनकारी घटनाओं में से एक था।
खान अब्दुल गफ्फार खान का शुरुआती जीवन:
उनका जन्म 6 फरवरी 1890 को ब्रिटिश भारत की पेशावर घाटी में एक समृद्ध ज़मींदार पश्तून परिवार में हुआ था। साल 1910 था, जब उन्होंने 20 साल की उम्र में अपने गृह नगर में एक मस्जिद स्कूल खोला। लेकिन ब्रिटिशों ने 1915 में उनके इस स्कूल को जबरदस्ती बंद करवा दिया। असल में ब्रिटिशों का आरोप था कि यह स्कूल उनके खिलाफ काम कर रहा था। ऐसा उन्होंने इसलिए कहा क्योंकि अब्दुल गफ्फार खान तुरंगज़ी के कार्यकर्ता हाजी साहब के पश्तून स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए थे, जो कि पहले से ही ब्रिटिशों के खिलाफ कई गतिविधियों को भड़काने के लिए जिम्मेदार थे।
लेकिन खान, महात्मा गांधी जी की शिक्षाओं से काफी प्रभावित थे। और अहिंसा के प्रति उनके पालन के परिणामस्वरूप उन्हें “सीमांत गांधी” की उपाधि मिली। वह महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा के कट्टर समर्थक थे।
फौज की स्थापना:
ब्रिटिशों का सामना करने के लिए उन्होंने 1920 के दशक में खुदाई खिदमतगार (“भगवान के सेवक”) की स्थापना की। इसे “रेड शर्ट्स” (सुर्ख पॉश) भी कहा जाता था। गौरतलब है कि खुदाई खिदमतगार में 1 लाख से ज्यादा लोग भर्ती हुए, जो ब्रिटिश अधिकारियों का विरोध करने और जंग की आग में कूदने को भी तत्पर थे।
भारत के विभाजन के प्रति उनकी सोच:
खान भारत के विभाजन विरुद्ध थे। कई राजनेताओं ने उनके इन विचारों की वजह से उनका बहुत विरोध किया और यह तक कहा कि वो मुस्लिम विरोधी हैं। 21 जून, 1947 को, विभाजन से ठीक सात सप्ताह पहले, बन्नू में भव्य सभा आयोजित की गई, जिसमें यह संकल्प लिया गया कि पश्तून लोगों को ब्रिटिश भारत के सभी पश्तून क्षेत्रों को शामिल करते हुए पश्तूनिस्तान के एक स्वतंत्र राज्य का विकल्प दिया जाना चाहिए। हालांकि अंग्रेजों ने उनके इस अनुरोध पर विचार नहीं किया।
पाकिस्तान आजाद पार्टी का गठन:
ब्रिटिशों के साथ-साथ, खान को कई परंपरावादियों और रूढ़िवादी तत्वों के विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन वो रुके नहीं। अब्दुल गफ्फार खान ने 23 फरवरी, 1948 को पाकिस्तान संविधान सभा के पहले सत्र में पाकिस्तान राष्ट्र के प्रति निष्ठा की शपथ ली। उन्होंने वादा किया कि वो नई सरकार को पूर्ण समर्थन देंगे। 8 मई 1948 को पाकिस्तान की पहली राष्ट्रीय विपक्षी पार्टी – पाकिस्तान आजाद पार्टी – का गठन भी, खान ने ही किया था। हालांकि उनकी निष्ठा पर सरकार को हमेशा संदेह रहा, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें 1948 से 1954 तक बिना किसी आरोप के घर में नजरबंद रखा गया। और इसी नजरबंदी के दौरान साल 1988 में खान अब्दुल गफ्फार खान दुनिया में नहीं रहे।
एक समर्पित मुस्लिम होकर खान अब्दुल गफ्फार खान जिंदगी भर अंग्रेजों और पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ एक अहिंसक आंदोलन लड़ते रहे। और भारत में हिंदू-मुस्लिम सुलह की हिमायत करते रहे। उनके इसी समर्पण के लिए उन्हें, 1987 में भारत रत्न दिया गया। वह पहले ऐसे विदेशी शख्स थे, जिन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था।
आज भी वो और उनकी सीख लाखों लोगों के दिलों में जिंदा है। उनके विचार हमेशा लोगों को प्रेरित करते रहेंगे। सीमांत गांधी के रूप में, उन्होंने न सिर्फ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम रोल निभाया, बल्कि न्याय, महिला शक्ति का सशक्तिकरण, समानता, लोकतांत्रिक मूल्यों की खोज और अहिंसा में अविस्मरणीय योगदान दिया।