Thursday, January 23, 2025
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एक उभरती हुई इंडस्ट्री – डायरेक्ट सेलिंग

EDITORIAL

एक उभरती हुई इंडस्ट्री – डायरेक्ट सेलिंग
राजीव गुप्ता, एम.फॉर्म. (बीएचयू)
वाइस प्रेसिडेण्ट – एफडीएसए

व्यवसाय में जब कोई नया आइडिया सामने आता है तो बहुत से लोग हाथ आजमाते हैं।
जब अमल होता है तब खामियां पता लगती हैं। कायदे कानून बनते-बनते तमाम लोग
हाथ धो कर निकल लेते हैं। कुछ लोग हाथ धोकर पीछे पड़ जाते हैं। लेकिन बहुत कम
ऐसे लोग होते हैं जो हाथ लगाए रहते हैं और व्यवसाय को मजबूत बनाते रहते हैं।

पिछली शताब्दी के सन्‌ पचास के दशक में व्यवसाय और साइकॉलॉजी का नए तरीके के
गठजोड़ से डायरेक्ट सेलिंग का सूत्रपात हुआ था। इस विधा ने पारम्परिक व्यवसाय के
बहुत से समीकरण बदल दिए और कुछ सम्पन्न लोगों की बपौती बने व्यवसाय-जगत को
जन-साधारण की पहुंच में ला दिया।

यह एक क्रान्तिकारी कदम था, जिसको पहचानकर मलेशिया की सरकार ने देश में
बिजनेस के आगमन के साथ, सन्‌ 1992-93 में कानूनी मान्यता दे दी और सुरक्षित
बिजनेस माहौल बना दिया। इस वजह से तीन दशकों में मलेशिया में डायरेक्ट सेलिंग का
निर्बध विकास हुआ और मलेशिया अग्रणी देशों में शामिल हो गया। सन्‌ 2008 की वैश्विक
मंदी के दौर में मलेशिया की अर्थव्यवस्था को डायरेक्ट सेलिंग ने संभाला था, जो कि एक
वैश्विक उदाहरण है।

विडम्बना ही कही जाएगी कि इसी समय-काल में भारत का एक प्रसिद्ध उद्योग घराना
वहां से इस कॉन्सेप्ट को देश में ले आया और कम पढ़े-लिखे, नॉन-टेक्निकल वर्ग और
साधन-हीन उद्यमियों को अवसर देने लगा। लेकिन इस बेमिसाल व्यवसाय की ओर भारत
सरकार ने दो दशकों तक देखा भी नहीं। नतीजन, उन्नति के अवसर दे रहा यह व्यवसाय
कायदे-कानून के अभाव में, कुछ लोगों के अनुचित लाभ का जरिया बन गया। सरकार की
नजर में डायरेक्ट सेलिंग एक सामाजिक समस्या थी।

व्यवसाय की सही पिक्चर और इसमें निहित देश-हित को रेखांकित करते हुए पिछले डेढ़
दशक से डायरेक्ट सेलिंग एसोसिएशनों ने सरकार के साथ लगातार संवाद किए। आज
डायरेक्ट सेलिंग व्यवसाय को मिली कानूनी मान्यता, सभी की सम्मिलित कड़ी मेहनत का
नतीजा है जिससे भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित कैरिअर बन गया है।

गौरतलब है कि भारत में सुरक्षित बिज़नेस माहौल बनाने में हमें तीन दशक लगे।
स्वाभाविक है कि समाज एवं देशहित में डायरेक्ट सेलिंग का फुल-पोटेंशियल निकालने में
तीन दशक और बीत जाएंगे। यह निराशा की बात नहीं है। जो इस लम्बे दौर के संघर्ष में
टिके रहे और आज चल रहे हैं, उन सबके लिए यहां अवसर-ही-अवसर हैं। करने के
लिए बहुत कुछ है।

भारत डायरेक्ट सेलिंग में देर से जागा है – कोई बात नहीं, इसमें कई फायदे भी हैं।
उदाहरण के लिए लंदन ट्यूब 1863 में बनी, 1900 में पेरिस मेट्रो, 1935 में मॉस्को मेट्रो
और 1953 में टोरण्टो सबवे चलनी शुरू हुईं। इन सभी विकसित देशों में सिस्टम
आउट-डेटेड हो रहे हैं। सिस्टम को मॉडर्न बनाने के लिए कुछ जुगाड़ लग जा रहे हैं
लेकिन हमारे तरह की लेटेस्ट मेट्रो इनके लिए असम्भव है। यही हमारी जीत है। डायरेक्ट
सेलिंग में हमको “लेट राइजर’ कहा जा सकता है; लेकिन हम लेटेस्ट सिस्टम्स पर काम
कर रहे हैं।

भविष्य का डायरेक्ट सेलिंग नए रूप में होगा। बिज़नेस और हयूमन साइकॉलॉजी के साथ
इसमें अब टेकनॉलॉजी भी जुड़ रही है। बहुत ही आकर्षक व्यवस्थाएं बन रही हैं।

कानूनी मान्यता के बाद, अगले चरण में डायरेक्ट सेलिंग उद्योग की सामाजिक-स्वीकार्यता
और कैरिअर-रूप बनाने के लिए बहुत कुछ किया जा रहा है। कई शिक्षण संस्थानों ने
डायरेक्ट सेलिंग विषय पर रेगुलर कोर्स आरम्भ करके मिशन में अपना योगदान देना शुरू
कर दिया है।

बिना रिस्क, बिना कैपिटल और बिना किसी विशेष योग्यता वालों के लिए सफलता की
सम्भावनाएं खोलने वाले डायरेक्ट सेलिंग प्लेटफॉर्म से 6# करोड़ लोग जुड़कर अपना
जीवन-स्तर उठाने के लिए काम कर रहे हैं।

दूसरों के लिए काम करना इस विधा की सबसे बड़ी शक्ति है। काम के साथ मैनेजमेण्ट
की तकनीकें सिखाने वाली कोई व्यवस्था नहीं है। पहचान का दायरा बढ़ने से अपनी पहुंच
बढ़ती है। देखा जाए तो तीन दशक पहले के मुकाबले, आज के युवाओं के लिए डायरेक्ट
सेलिंग का “सही समय पर सही अवसर” आ गया है। रनवे तैयार है, चलकर करियर
बनाने का समय है।

 

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