Thursday, January 30, 2025
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Rabindranath Tagore Jayanti 2024: कई देशों के राष्ट्रगान रचयिता रवींद्रनाथ टैगोर जी की 163वीं जयंती

Rabindranath Tagore Jayanti 2024: रवीन्द्रनाथ टैगोर जयंती को उनकी जन्मभूमि कोलकाता में रवीन्द्र जयंती या पोन्चेशे बोइशाख के नाम से भी जाना जाता है। आज हम साल 2024 में उनकी 163वीं जयंती मना रहे हैं। जैसा कि हम इस प्रतिष्ठित व्यक्ति के जीवन और विरासत का सम्मान करते हैं, आइए रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की विनम्र शुरुआत से लेकर भारतीय संस्कृति और उससे परे उनके स्थायी प्रभाव के बारे में जानें।

Rabindranath Tagore Jayanti 2024: प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

रवीन्द्रनाथ टैगोर जी का जन्म 7 मई, 1861 को कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक प्रमुख बंगाली परिवार में हुआ था, जो साहित्य, कला और सामाजिक सुधार में अपने योगदान के लिए प्रसिद्ध था। वह देबेंद्रनाथ टैगोर और सारदा देवी से पैदा हुए तेरह बच्चों में सबसे छोटे थे। टैगोर जी का पालन-पोषण बंगाली संस्कृति में गहराई से निहित था, और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर निजी शिक्षकों के संरक्षण में प्राप्त की।

साहित्यिक और कलात्मक प्रतिभा

छोटी उम्र से ही उन्होंने कविता लिखने और संगीत रचना करने की असाधारण प्रतिभा प्रदर्शित की। उनकी साहित्यिक यात्रा सोलह वर्ष की उम्र में उनके पहले कविता संग्रह, “कबी कहिनी” (एक कवि की कहानी) के प्रकाशन के साथ शुरू हुई। टैगोर के शुरुआती कार्यों ने प्रकृति की सुंदरता, जीवन के सुख और दुख और सत्य और ज्ञान की आध्यात्मिक खोज से प्रेरणा ली।

रवीन्द्रनाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार कब मिला?

रवीन्द्रनाथ टैगोर जी की साहित्यिक कृति अपने दायरे और गहराई में अद्वितीय है, जिसमें कविता, लघु कथाएँ, उपन्यास, निबंध और नाटक शामिल हैं। उनकी महान कृति, “गीतांजलि” (सॉन्ग ऑफरिंग्स), जो आध्यात्मिक कविताओं का एक संग्रह है, ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय प्रशंसा दिलाई। इसके लिए उन्हें 1913 में साहित्य में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार मिला, जिससे वह यह सम्मान पाने वाले पहले गैर-यूरोपीय बन गए। उन्होंने भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान भी लिखे।

अपनी साहित्यिक गतिविधियों के अलावा, टैगोर जी एक दूरदर्शी शिक्षक भी थे, जिन्होंने पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन में प्रसिद्ध संस्थान, विश्व-भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। विश्वविद्यालय कला, संस्कृति और बौद्धिक आदान-प्रदान का केंद्र बन गया, जिसने दुनिया भर से विद्वानों, कलाकारों और छात्रों को आकर्षित किया।

समाज सुधारक और दार्शनिक

रवींद्रनाथ टैगोर जी का प्रभाव साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र से आगे बढ़कर सामाजिक सुधारक और दार्शनिक थे। वह भारतीय स्वतंत्रता के मुखर समर्थक और उपनिवेशवाद और उत्पीड़न के कट्टर आलोचक थे। नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर जी का 80 वर्ष की आयु में 7 अगस्त 1941 को निधन हो गया था। 

रवीन्द्रनाथ टैगोर जी के विचार (Rabindranath Tagore Quotes) 

1) किसी बच्चे को केवल अपनी शिक्षा तक ही सीमित न रखें, क्योंकि वह किसी और समय में पैदा हुई है।

2) प्रसन्न रहना बहुत सरल है, लेकिन सरल होना बहुत कठिन है। 

3) यदि आप इसलिए रोते हैं क्योंकि सूरज आपके जीवन से चला गया है, तो आपके आँसू आपको तारे देखने से रोकेंगे।

4) यदि आप सभी त्रुटियों के लिए दरवाजा बंद करते हैं, तो सच्चाई बंद हो जाएगी। 

5) दोस्ती की गहराई परिचित की लंबाई पर निर्भर नहीं करती। 

6) प्रेम कब्जे का दावा नहीं करता, बल्कि स्वतंत्रता देता है। 

7) सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाक़ू की तरह है, जिसमे सिर्फ ब्लेड है। यह इसका प्रयोग करने वाले को घायल कर देता है।

8) मैं सोया और स्वप्न देखा कि जीवन आनंदमय है। मैं जागा और देखा कि जीवन सेवा है। मैंने अभिनय किया और देखा, सेवा आनंद थी।

9) मनुष्य की सेवा भी ईश्वर की सेवा है। 

10) हम दुनिया में तब जीते हैं जब हम इस दुनिया से प्रेम करते हैं। 

11) बादल मेरे जीवन में तैरते हुए आते हैं, अब बारिश या अश्रु तूफान को ले जाने के लिए नहीं, बल्कि मेरे सूर्यास्त आकाश में रंग जोड़ने के लिए। 

12) ऊंचाई तक पहुंचें, क्योंकि सितारे आप में छिपे हैं। गहरे सपने देखो, क्योंकि हर सपना लक्ष्य से पहले आता है।

13) फूल की पंखुड़ियों को तोड़ कर आप उसकी सुंदरता को इकठ्ठा नहीं करते।

14) मौत प्रकाश को ख़त्म करना नहीं है; ये सिर्फ भोर होने पर दीपक बुझाना है। 

15) संगीत दो आत्माओं के बीच अनंत भरता है। 

16) प्रत्येक शिशु यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है। 

17) अगर मैं इसे एक दरवाजे से नहीं बना सकता, तो मैं दूसरे दरवाजे से जाऊंगा- या मैं एक दरवाजा बना दूंगा। वर्तमान कितना भी काला क्यों न हो, कुछ बहुत अच्छा आएगा। 

18) जो कुछ हमारा है वो हम तक तभी पहुचता है, जब हम उसे ग्रहण करने की क्षमता विकसित करते हैं।

19) जब हम विनम्र होते हैं तो तब हम महानता के सबसे नजदीक होते हैं। 

20) जब मैं अपने आप पर हँसता हूँ तो मेरे ऊपर से मेरा बोझ बहुत कम हो जाता है। 

21) मैंने स्वप्न देखा कि जीवन आनंद है, मैं जागा और पाया कि जीवन सेवा है, मैंने सेवा की और पाया कि सेवा में ही आनंद है।

22) अगर आप खड़े होकर सिर्फ पानी को देखोगे तो आप समुद्र पार नहीं कर सकते। 

23) हम महानता के सबसे करीब तब आते हैं जब हम विनम्रता में महान होते हैं।

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